10 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने किया था खारिज, अब फिर सरकार कर रही लाने की तैयारी! क्या है NJAC एक्ट?

दिल्ली हाई कोर्ट के जज के घर पर कैश मिलने के बाद एक बार फिर 10 साल पुराने कानून की चर्चा तेज हो गई है. कहा जा रहा है कि इस सरकार फिर से इस कानून के लाने पर विचार कर रही है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में इस कानून को 'असंवैधानिक' करार देते हुए खारिज कर दिया था.  हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर मिले कैश का मामला सुर्खियों में बना हुआ है, जिसमें वो कार्रवाई का सामना भी कर रहे हैं. देश की न्याय व्यवस्था में इस बड़े घटनाक्रम के बाद केंद्र सरकार जजों की नियुक्ति से जुड़े एक नए कानून पर गौर कर रही है. हालांकि यह अभी बहुत यह शुरुआती दौर में है लेकिन खबरें हैं कि सरकार इस ऑप्शन को पूरी तरह से नकार नहीं रही है. ये वही कानून है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2025 में असंवैधानिक बताते हुए खारिज कर दिया था.

Supreme Court: दिल्ली हाई कोर्ट के जज के घर पर कैश मिलने के बाद एक बार फिर 10 साल पुराने कानून की चर्चा तेज हो गई है. कहा जा रहा है कि इस सरकार फिर से इस कानून के लाने पर विचार कर रही है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में इस कानून को ‘असंवैधानिक’ करार देते हुए खारिज कर दिया था.  हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर मिले कैश का मामला सुर्खियों में बना हुआ है, जिसमें वो कार्रवाई का सामना भी कर रहे हैं. देश की न्याय व्यवस्था में इस बड़े घटनाक्रम के बाद केंद्र सरकार जजों की नियुक्ति से जुड़े एक नए कानून पर गौर कर रही है. हालांकि यह अभी बहुत यह शुरुआती दौर में है लेकिन खबरें हैं कि सरकार इस ऑप्शन को पूरी तरह से नकार नहीं रही है. ये वही कानून है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2025 में असंवैधानिक बताते हुए खारिज कर दिया था.

2014 में पास किया था कानून
खास बात यह है कि इस मुद्दे पर सरकार को विपक्ष का भी साथ मिल सकता है, खास तौर पर कांग्रेस सरकार के साथ खड़ी नजर आ सकती है. कांग्रेस के दिग्गज नेता जयराम रमेश ने 21 मार्च को इस विषय को उठाया. इसके अलावा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) कानून का जिक्र करना सरकार की भविष्य की योजनाओं की तरफ इशारा करता है. यह कानून 2014 में पास किया गया था लेकिन 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया था.

खरगे-नड्डा के साथ उपराष्ट्रपति की मीटिंग
सोमवार को उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा में नेता जेपी नड्डा और विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे के साथ मीटिंग की. उन्होंने बिना नाम लिए NJAC कानून को फिर से लागू करने की उम्मीदों की तरफ इशारा किया. इस मीटिंग में जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से मिले नकदी कांड और चल रही जांच पर चर्चा हुई.
बुलाई जा सकती है ऑल पार्टी मीटिंग
हालांकि NJAC जैसे किसी कानून पर सीधे चर्चा नहीं हुई, लेकिन न्यायपालिका की छवि को साफ रखने और किसी भी तरह के भ्रष्टाचार से बचाने के लिए मौजूदा व्यवस्था में बदलाव की जरूरत पर बात हुई. फिलहाल ज्यादातर विपक्ष इस बदलाव के पक्ष में दिख रहा है और उपराष्ट्रपति जल्द ही इस मुद्दे पर सभी पार्टियों की मीटिंग भी बुला सकते हैं.

2015 में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था NJAC
यह पहली बार नहीं है जब जजों की नियुक्ति को लेकर चर्चा तेज हुई हो, भारत में अकसर यह मुद्दा जेरे-बहस रहता है. अभी जो सिस्टम चल रहा है उसे ‘कॉलेजियम सिस्टम’ कहा जाता है, लेकिन 2014 में सरकार ने एक नया कानून ‘NJAC (National Judicial Appointments Commission)’ लाने की कोशिश की थी, ताकि सरकार को भी जजों की नियुक्ति में भूमिका मिल सके. हालांकि 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया और कॉलेजियम सिस्टम को बहाल कर दिया.

कॉलेजियम सिस्टम क्या है?
कॉलेजियम सिस्टम 1993 से लागू है और इसमें सुप्रीम कोर्ट के 5 सबसे सीनियर जज मिलकर नए जजों की नियुक्ति, ट्रांसफर और प्रमोशन की सिफारिश करते हैं.

सरकार को कॉलेजियम की सिफारिश माननी होती है, लेकिन वह इसे वापस भेज सकती है. अगर कॉलेजियम दोबारा वही नाम भेजता है तो आमतौर पर सरकार को इसे कबूल करना पड़ता है. इस सिस्टम में पारदर्शिता की कमी का आरोप लगाता हुए कई बार इसकी आलोचना होती रही है. कॉलेजियम सिस्टम को ‘जज खुद की नियुक्ति खुद करते हैं’ वाला सिस्टम कहा जाता है.

 

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