
Shashi Tharoor: कांग्रेस नेता शशि थरूर ने एक बार फिर नरेंद्र मोदी सरकार की तारीफ की है. उन्होंने भारत की विदेश नीति की तारीफ करते हुए तीन साल बाद, ऐसा लगता है कि मेरी सोच गलत थी क्योंकि भारत की नीति ने यह यकीनी बनाया है कि हमारे प्रधानमंत्री दो हफ्तों के अंतर में जेलेंस्की और पुतिन दोनों से मिल सकें. कांग्रेस नेता शशि थरूर ने मंगलवार को नई दिल्ली में रायसीना डायलॉग में स्वीकार किया कि रूस-यूक्रेन जंग पर भारत की स्थिति की आलोचना करना उनके लिए गलत साबित हुआ. उन्होंने कहा कि भारत की मजबूत नीति ने उसे एक महत्वपूर्ण भूमिका में ला खड़ा किया है, जिससे वह स्थायी शांति स्थापित करने में मदद कर सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे नेता हैं जो यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दोनों को गले लगा सकते हैं.
‘तीन साल बाद हुआ एहसास’
थरूर जो पहले भारत के ज़रिए रूस के हमले की निंदा करने की मांग कर रहे थे, ने कबूल किया कि उनकी आलोचना गलत साबित हुई. उन्होंने कहा,’मैं अभी भी अपने चेहरे से अंडा साफ कर रहा हूं क्योंकि मैं संसद में उन कुछ लोगों में से एक था जिन्होंने फरवरी 2022 में भारत की स्थिति की आलोचना की थी.’ थरूर ने समझाया कि उनकी आलोचना संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उल्लंघन और यूक्रेन की संप्रभुता की बुनियाद पर थी, लेकिन तीन साल बाद उन्हें महसूस हुआ कि भारत की संतुलित नीति की वजह से प्रधानमंत्री मोदी रूस और यूक्रेन दोनों से बात करने में सक्षम हुए हैं.
शांति सैनिक भेजने पर भी विचार कर सकता है भारत
उन्होंने यह भी कहा,’तीन साल बाद, ऐसा लगता है कि मेरी सोच गलत थी क्योंकि भारत की नीति ने यह यकीनी बनाया है कि हमारे प्रधानमंत्री दो हफ्तों के अंतर में जेलेंस्की और पुतिन दोनों से मिल सकें और दोनों देशों में स्वीकार किए जाएं.’ इस दौरान थरूर ने यह भी इशारा दिया कि अगर रूस और यूक्रेन के बीच शांति समझौता होता है तो भारत शांति सैनिक भेजने पर विचार कर सकता है. उन्होंने कहा कि रूस ने नाटो शांति सैनिकों को खारिज कर दिया है, जिससे गैर-यूरोपीय देशों की भूमिका ज्यादा अहम हो सकती है.
2003 की घटना का किया जिक्र
शशि थरूर आगे कहते हैं,’एक भारतीय सांसद के रूप में मुझे नहीं लगता कि भारत शांति सैनिक भेजने के विचार का कड़ा विरोध करेगा, क्योंकि भारत का शांति मिशनों में लंबा इतिहास रहा है. उन्होंने 2003 की घटना का जिक्र किया जब भारतीय संसद ने अमेरिका के नेतृत्व वाले आक्रमण के बाद इराक में सैनिक भेजने से इनकार कर दिया था, लेकिन उन्होंने यह भी कहा,’मुझे नहीं लगता कि यूक्रेन के मामले में ऐसा होगा.’ बता दें कि भारत अब तक 49 से ज्यादा संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में हिस्सा ले चुका है, जो वैश्विक स्थिरता के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है.