
World Glaucoma Day: वर्ल्ड ग्लूकोमा डे हर साल 12 मार्च को मनाया जाता है. ग्लूकोमा यानी काला मोतिया आंखों की ऐसी गंभीर बीमारी है जिसका लोगों को बहुत देर से पता चलता है. विश्व ग्लूकोमा दिवस पर जानें इस बीमारी के लक्षण और बचाव के तरीके. साथ ही जानें इसके होने के पीछे क्या कारण होते हैं.ग्लूकोमा यानी काला मोतिया… आंखों की एक ऐसी बीमारी है जिसका समय रहते इलाज न किया जाए तो इंसान अंधा भी हो सकता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक सिर्फ भारत में 11.9 मिलियन लोग ग्लूकोमा जैसी आंखों की गंभीर बीमारी की चपेट में हैं. ये कारण देश के अंधेपन के 12.8 फीसदी मामलों के लिए जिम्मेदार है. जो व्यक्ति इसकी चपेट में आता है उसे लंबे समय बाद पता चलता है कि वह इसका शिकार हो गया है. क्योंकि इसके होने के बाद एक समय पर आंखों से दिखना कम या धुंधलापन महसूस होने लगता है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि जब आंखों के बीच दवाब बढ़ने लगता है तो इससे दृष्टि की नसों को नुकसान पहुंचने लगता है.
हर साल 12 मार्च को विश्व ग्लूकोमा डे मनाया जाता है. ये दिन और ग्लूकोमा वीक लोगों को काला मोतिया के बारे में शिक्षित करने के लिए है. इससे लोगों को बीमारी के प्रति जागरूक करके बचाव कैसे करें ये समझाने की कोशिश की जाती है. इस आर्टिकल में हम आपको बताने जा रहे हैं कि ग्लूकोमा डे और ग्लूकोमा वीक क्यों मनाया जाता है. साथ ही जानें इस बीमारी के लक्षण और आप किन तरीकों को आजमाकर इससे बचाव कर सकते हैं.
क्यों मनाया जाता है विश्व ग्लूकोमा दिवस
वर्ल्ड ग्लूकोमा डे को मनाने के लिए 12 मार्च का दिन चुना गया है. दिन को मनाए जाने का अहम उद्देश्य लोगों को आंखों की इस गंभीर बीमारी के प्रति जागरूक करते हुए इसके बचाव की जानकारी फैलाना है. ताकि लोग इसके लक्षणों को समय से पहले ही जान लें. साथ ही ग्लूकोमा डे के जरिए समय पर इलाज करवाने की जरूरत पर जोर देना है. लोगों का ये जानना बेहद जरूरी है कि अगर समय पर इसका इलाज न हो तो अंधापन पूरी जिंदगी की समस्या बन सकता है. विश्व ग्लूकोमा दिवस पर कई अभियान और कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं ताकि लोगों को नियमित आंखों की जांच की महत्ता समझाई जा सके.
क्यों होती है ग्लूकोमा की बीमारी?
आंखों के अंदर दबाव अगर बढ़ने लगे तो इसकी नसों को नुकसान पहुंचता है. जिस वजह से काला मोतिया के होने का खतरा बढ़ जाता है. शुरुआत में इसके लक्षण हल्के होते हैं इसलिए पहचान में नहीं आते हैं. इसके कई टाइप हैं जिसमें प्राइमरी ओपन-एंगल ग्लूकोमा, एंगल-क्लोजर ग्लूकोमा, न्यूरोपैथी ग्लूकोमा और जन्मजात ग्लूकोमा के नाम शामिल हैं. इसमें सबसे आम ग्लूकोमा का टाइप प्राइमरी ओपन-एंगल ग्लूकोमा है, जिसमें आंखों को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचता है. वहीं एंगल-क्लोजर ग्लूकोमा के होने पर आंखों में दर्द, जलन और धुंधला दिखने लगता है. तीसरे टाइप न्यूरोपैथी ग्लूकोमा में आंखों की नसो को ज्यादा नुकसान पहुंचता है जिससे अंधापन आ सकता है. वहीं बर्थ से होने वाले ग्लूकोमा में बच्चे प्रभावित होते हैं.
ग्लूकोमा के लक्षण
काला मोतिया के लक्षण कुछ आम है जिसमें धुंधला दिखना, रात को कम या न दिखना, आंखों में दर्द या भारीपन और अचानक से अंधापन आना शामिल है. वहीं इसके कारण की बात की जाए तो ये आनुवांशिक, आंख पर चोट, उम्र का बढ़ना, हाई बीपी, डायबिटीज और आंखों में इंफेक्शन की वजह से हो सकता है. अगर आंखों में ऐसी कोई दिक्कत हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करके इलाज करना चाहिए.
ग्लूकोमा से बचाव
माना जाता है कि काला मोतिया को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता. हालांकि इसे कंट्रोल जरूर कर सकते हैं. इसके लिए दवा, लेजर सर्जरी और सर्जरी की मदद ली जाती है. बचाव के लिए और भी कई तरीके आजमाए जा सकते हैं जिसमें नियमित आंखों की जांच, आंखों की सेफ्टी शामिल है. अगर किसी के परिवार में पहले से ग्लूकोमा की शिकायत है तो उन्हें आंखों से जुड़ी जांच करवाते रहना चाहिए.