कन्हैया कुमार के बिहार में सक्रिय होने से लालू परिवार की क्यों बढ़ी चिंता?

बिहार में आत्मनिर्भर बनने की कोशिश में जुटी कांग्रेस के लिए आरजेडी ने सियासी टेंशन बढ़ा दी है. कन्हैया कुमार 16 मार्च से बेरोजगारी और पलायन के मुद्दे पर पदयात्रा शुरू करने जा रहे हैं. इस तरह कन्हैया कुमार को आगे कर कांग्रेस बिहार में अपना सियासी तलाश रही है, जिससे आरजेडी खुश नहीं है. इसके चलते बिहार चुनाव को लेकर बुधवार को राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे के साथ बिहार कांग्रेस नेताओं के साथ होने वाली बैठक टल गई है. ऐसे में सवाल उठता है कि कन्हैया कुमार का बिहार में सियासी दखल बढ़ने के साथ ही लालू परिवार क्यों बेचैन हो जाता है?

बिहार में आत्मनिर्भर बनने की कोशिश में जुटी कांग्रेस के लिए आरजेडी ने सियासी टेंशन बढ़ा दी है. कन्हैया कुमार 16 मार्च से बेरोजगारी और पलायन के मुद्दे पर पदयात्रा शुरू करने जा रहे हैं. इस तरह कन्हैया कुमार को आगे कर कांग्रेस बिहार में अपना सियासी तलाश रही है, जिससे आरजेडी खुश नहीं है. इसके चलते बिहार चुनाव को लेकर बुधवार को राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे के साथ बिहार कांग्रेस नेताओं के साथ होने वाली बैठक टल गई है. ऐसे में सवाल उठता है कि कन्हैया कुमार का बिहार में सियासी दखल बढ़ने के साथ ही लालू परिवार क्यों बेचैन हो जाता है?

कन्हैया कुमार के नेतृत्व में यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई की टीम रोजगार और पलायन के मुद्दे पर 16 मार्च से पश्चिम चंपारण से पदयात्रा निकलने जा रही है. कन्हैया कुमार इस पदयात्रा में मुख्य आकर्षण होंगे. इस पदयात्रा को कन्हैया कुमार की बिहार वापसी की यात्रा मानी जा रही है. कन्हैया कांग्रेस में रहते हुए बिहार में अपना भविष्य देख रहे हैं और ठीक वैसे ही कांग्रेस भी कन्हैया कुमार से वैसी ही उम्मीद बिहार में पाल रखी है, जिसके चलते बिहार की सियासी पिच पर उतारने का दांव चला है.

कन्हैया कुमार के बिहार में सियासी तौर पर एक्टिव होने से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद खुश नहीं हैं. इसके पीछे कारण यह दिखता है कि दोनों स्वजातीय हैं, लेकिन कहानी अलग है. अखिलेश प्रसाद सिंह का मानना है कि कांग्रेस पार्टी जिस तरह कन्हैया कुमार को बिहार में प्रमोट कर रही है, उस से कांग्रेस और आरजेडी के संबंध बिगड़ सकते हैं. ऐसे में एक बात साफ है कि कन्हैया कुमार और आरजेडी के बीच सियासी दूरी अभी बरकरार है, जिसका पॉलिटिकल इंपैक्ट सिर्फ गठबंधन की राजनीति पर ही नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी की अंदरूनी सियासत पर भी पड़ता दिख रहा.

कन्हैया की एंट्री से आरजेडी क्यों बेचैन?
छात्र राजनीति से आए कन्हैया कुमार के जरिए कांग्रेस बिहार में अपना खोया हुआ सियासी जनाधार वापस पाने की जुगत में है, लेकिन आरजेडी को यह बात स्वीकार नहीं है. कन्हैया कुमार जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं. हिंदी-इंग्लिश पर दोनों ही भाषाओं पर उनकी शानदार पकड़ है. कन्हैया अपनी बातों को तर्क के साथ रखने की कमाल क्षमता रखते है और शानदार भाषण देते हैं.

कन्हैया कुमार हाजिरजवाब और अपनी बातों से मौके पर ही राजनीतिक विरोधियों की बोलती बंद करने की क्षमता के साथ ही, भाषण की बदौलत भीड़ खींचने की क्षमता रखते हैं. इस तरह एक नेता के अंदर जो खासियत होनी चाहिए, वो सब कुछ कन्हैया कुमार में दिखती है. बिहार की सियासत में सबसे प्रभावी माने जाने वाली भूमिहार जाति से भी कन्हैया कुमार आते हैं.

सियासत को दूर से ही भांपने में माहिर आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव कन्हैया कुमार की सियासी खूबियों से वाकिफ हैं, जिसके चलते ही माना जाता है कि लालू यादव नहीं चाहते कि कन्हैया कुमार बिहार में अपना पैर जमाएं. जेएनयू में नारे लगाने के मामले में तिहाड़ से बाहर आने के बाद बिहार लौटते ही कन्हैया कुमार पटना में लालू यादव के घर गए थे. लालू का पैर छूकर आशीर्वाद लेने की कोशिश भी की थी. इसके बाद भी लालू यादव ने 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान कन्हैया कुमार को महागठबंधन में एंट्री नहीं दी थी.

कन्हैया की एंट्री पर लालू का वीटो-पावर
सीपीआई ने कन्हैया कुमार को बेगूसराय से टिकट दिया था तो आरजेडी ने भी अपना प्रत्याशी उतार दिया था. आरजेडी से मुस्लिम प्रत्याशी के उतरने से कन्हैया कुमार तीसरे नंबर पर पहुंच गए थे. कन्हैया कुमार अब कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं और बिहार में सियासी पैर पसारना चाहते हैं. लालू यादव ने 2019 चुनाव दौरान जिस कन्हैया कुमार को महागठबंधन में एंट्री नहीं दी थी, वो कन्हैया अब कांग्रेस के हिस्सा हैं.

2024 के लोकसभा चुनाव में कन्हैया कुमार को बिहार के बजाय दिल्ली की सीट से कांग्रेस को चुनाव लड़ना पड़ा है तो उसके पीछे लालू यादव का अहम रोल खा. इस तरह बिहार में अब तक कन्हैया कुमार को कंट्रोल करने में लालू यादव कामयाब हैं, लेकिन अब कांग्रेस कन्हैया कुमार को बिहार की पिच पर उतारने की तैयारी की है. 2025 विधानसभा चुनाव से पहले बिहार में कन्हैया को एक्टिव अपनी जड़े जमाना चाहती है.

आरजेडी को क्यों सता रही सियासी चिंता
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो आरजेडी और लालू परिवार नहीं चाहता है कि बिहार में कन्हैया कुमार राजनीतिक तौर पर एक्टिव हों. लालू यादव को कन्हैया कुमार से कोई चिढ़ नहीं है, लेकिन सियासी तौर पर मजबूरी है. कहा जाता है कि अगर कन्हैया कुमार बिहार में कैंप करते हैं तो लालू यादव को अपने बेटे तेजस्वी यादव का करियर खतरे में दिखने लगता है.

लालू प्रसाद यादव की मुश्किल को समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है. वो नहीं चाहते कि तेजस्वी यादव के इर्द गिर्द बिहार से कोई नेता ऐसे उभर आए कि उनके बेटे तेजस्वी यादव के लिए चुनौती खड़ी हो जाये और उसका कद छोटा हो जाये. हालांकि, देखा जाए लालू यादव तो तेज प्रताप यादव को भी वैसा मौका नहीं देना चाहते – और बेटी मीसा भारती को ये बात सबसे ज्यादा कचोटती रहती है. ऐसे में कन्हैया कुमार बिहार में टिक गए तो तेजस्वी यादव के पॉलिटिकल करियर को उस ऊंचाई पर नहीं पहुंच पाएगा, जैसा लालू यादव चाहते हैं.

कन्हैया कुमार बनाम तेजस्वी यादव
लालू प्रसाद यादव के परिवार को इस बात शंका है कि कन्हैया कुमार बिहार की राजनीति में खुद को स्थापित करते हैं तो तेजस्वी यादव के लिए मुश्किल आ सकती है. खासकर मुस्लिमों में कन्हैया कुमार काफी लोकप्रिय हैं और आरजेडी से मुस्लिम वोट खिसक सकते हैं. हकीकत यही है कि मुस्लिमों के आधार वोट पर भी आरजेडी बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बनने में सफल है. ऐसे में अगर कन्हैया कुमार के कंधे के सहारे कांग्रेस में थोड़ी भी जान आ गई तो राजद के लिए खतरा हो सकता है.

कन्हैया कुमार युवा हैं, और जब भी तेजस्वी यादव से तुलना होती है तो पढ़ाई लिखाई की बातें होने लगती हैं. फिर से आरजेडी कार्यकर्ताओं को तेजस्वी यादव के बचाव में मोर्चा संभालना पड़ता है. ये तो सच है कि लालू यादव कभी भी नहीं चाहेंगे कि तेजस्वी यादव का हम उम्र कोई भी बिहार से बड़ा नेता बन जाए. कन्हैया के बिहार मैदान में जम जाने से भी तेजस्वी यादव के लिए मुश्किल खड़ी हो जाती है.

कन्हैया कुमार कहीं तेजस्वी यादव की राजनीति में बड़ा रोड़ा बन कर खड़े हैं, लेकिन तेजस्वी खुद को बिहार की राजनीति में स्थापित करने में सफल हो गए हैं. तेजस्वी दो बार बिहार के डिप्टी सीएम रहकर अपनी सियासी पकड़ बनाने में काफी हद तक सफल हो गए हैं जबकि कन्हैया कुमार अभी तक कोई भी चुनाव नहीं जीत सके हैं. 2019 और 2024 में दो लोकसभा चुनाव हार चुके हैं. इसके बाद भी कन्हैया कुमार को बिहार की राजनीति में लालू परिवार बहुत ज्यादा सियासी स्पेस देने के मूड में नहीं है. कन्हैया कुमार को बिहार से बाहर रखने में अब तक लालू यादव कामयाब हैं.

कांग्रेस पर लालू यादव का सियासी प्रभाव
लालू प्रसाद यादव बिहार कांग्रेस को अपने हिसाब से ‘डील’ कर पा रहे हैं. बिहार की इंटरनल पॉलिटिकल सर्किल में हमेशा इस बात की चर्चा रहती है कि लालू यादव हमेशा बिहार कांग्रेस को अपनी ‘मुट्ठी’ में रखना चाहते हैं. कांग्रेस जैसे ही ताकतवर होगी, लालू यादव को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. इसलिए, बिहार में जो भी कांग्रेस का अध्यक्ष रहा लालू यादव का ‘कृपा पात्र’ रहा. मदन मोहन झा और भक्त चरण दास की जोड़ी ने लालू यादव के नाक में दम जरूर कर दिया था.

अखिलेश प्रसाद सिंह बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष हैं. इनका ओरिजनल रूट कांग्रेस नहीं है, लालू यादव की पार्टी आरजेडी से होते हुए कांग्रेस को ठिकाना बनाए हैं. लालू यादव और अखिलेश सिंह की गोटी बिल्कुल सेट है. ऐसे में कांग्रेस के नेताओं में इसे लेकर स्टैंड लेने की ताकत भी नहीं बची है. वो किसी भी सूरत में लालू यादव को नाराज करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं.

कन्हैया के सहारे कांग्रेस की उम्मीद
कांग्रेस में शामिल होने के बाद जब 2021 में कन्हैया कुमार ने पटना पार्टी ऑफिस में भाषण दिया तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं में गजब का उत्साह देखा गया था. कन्हैया कुमार ने सीधे-सीधे लालू यादव से गठबंधन का हिसाब मांग दिया था. कन्हैया कुमार के कांग्रेस ज्वाइन कर लेने के बाद बिहार में कांग्रेस के मजबूत होने के कयास लगाये जा रहे हैं. पिछले दिनों कन्हैया कुमार ने साफ कर दिया था कि आरजेडी और कांग्रेस में कोई छोटा-बड़ा भाई नहीं बल्कि सब बराबर हैं. सीट शेयरिंग तक का फार्मूला उन्होंने रख दिया था.

राहुल गांधी ने बिहार में कांग्रेस को खोए हुए जनाधार को वापस लाने के लिए अपने करीबी युवा नेताओं को लगाया है. बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने युवा चेहरे पर भरोसा करते हुए कृष्णा अल्लावारु को प्रदेश प्रभारी बनाया है तो राहुल गांधी ने अपने संसदीय क्षेत्र से आने वाले सुशील पासी को सह प्रभारी बनाया तो युवा नेता शाहनवाज आलम को भी सहप्रभारी के तौर पर लगा रखा है. इसी के साथ युवा नेता कन्हैया कुमार को भी एक्टिव कर दिया गया है. हालांकि, इससे पार्टी के अंदर ही गुटबाजी शुरू हो गई है.

कन्हैया कुमार को लेकर पार्टी दो गुटों में विभाजित हो गई है. एक गुट प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह के साथ है, जबकि दूसरा गुट कन्हैया कुमार के साथ. विवाद इतना बढ़ गया है कि पार्टी को 12 मार्च को राहुल गांधी के साथ बिहार के नेताओं की बैठक स्थगित करनी पड़ी है. इस बैठक में राहुल गांधी प्रदेश के नेताओं से विधानसभा चुनाव पर फीडबैक लेने वाले थे.

बिहार कांग्रेस में सब ठीक?
बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह बहुत नाराज चल रहे हैं. माना जा रहा है कि नए प्रभारी कृष्णा अल्लावारु जिस स्टाइल में काम कर रहे हैं, उससे प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह तालमेल नहीं बिठा पा रहे हैं. हालांकि, वह इसका विरोध भी नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि प्रभारी को सीधा केंद्रीय नेतृत्व का आशीर्वाद मिला हुआ है. इसी बीच कन्हैया कुमार की बिहार वापसी ने ‘आग में घी डालने’ का काम किया है.

कांग्रेस के इन्फ्रास्ट्रकर की बदौलत कन्हैया कुमार मजबूत हो जाते हैं. बिहार में अभी तक कांग्रेस के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं था. सांसद और पूर्व मंत्री तारिक अनवर एनसीपी का अपना दबदबा हुआ करता थे, लेकिन उम्र के इस पड़ाव पर हैं, कि उनकी पकड़ ढीली पड़ी है. ऐसे में कांग्रेस कन्हैया को एक्टिव करने पर आरजेडी की चिंता बढ़ गई है.

 

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