
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में एक गांव ऐसा भी है, जहां 6000 सालों से गांव के लोग होलिका दहन नहीं करते. होली पूजन के लिए उन्हें दूसरे गांव जाना पड़ता है. यहां के लोगों का कहना है कि गांव में स्थित महाभारत कालीन बाबा भोलेनाथ के मंदिर में देवो के देव महादेव खुद विराजमान हैं और वो विचरण करते रहते हैं. महादेव के पांव न जल जाए, इसलिए वो गांव में होलिका दहन नहीं करते.
महाभारत काल से स्थापित बाबा भोलेनाथ का ये मंदिर सहारनपुर शहर से करीब 50 किलोमीटर दूर बरसी गांव में स्थित है. बताया जाता है कि महाभारत युद्ध के दौरान इस मंदिर को दुर्योधन ने रातों रात बनाया था. सुबह जब इस मंदिर को पांडु पुत्र भीम ने देखा तो उन्होंने अपने गदा से इस मंदिर का मुख्य दरवाजा घुमा दिया था. पूरे देश में यही एक मंदिर है, जिसको जब भीम ने अपने गदा से घुमाया तो ये पश्चिम मुखी हो गया.
बरसी कैसे पड़ा गांव का नाम?
इस मंदिर के अंदर स्वयंभू शिवलिंग है, जिसके दर्शनों के लिए पूरे भारत से लोग शिवरात्रि और अन्य आयोजनों पर पहुंचते हैं. इस गांव का नाम बरसी पड़ने पीछे भी कहानी है. महाभारत के दौरान जब भगवान श्री कृष्ण इस जगह आए तो यहां की सुंदरता देखकर उन्होंने इस गांव की तुलना बृज से भी की थी, जिसके बाद इस तरह इस गांव का नाम बरसी पड़ा था.
6 हजार सालों से नहीं हुआ होलिका दहन
गांव के निवासी अनिल गिरी और रवि सैनी बताते हैं कि करीब 5 या 6 हजार सालों से इस गांव में होलिका दहन नहीं हुआ. इस गांव के लोगों को होलिका पूजन और होलिका दहन के लिए नजदीक के ही दूसरे गांव जाना पड़ता है. गांव के लोगों का कहना है कि हमारे गांव के इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ साक्षात निवास करते हैं और वो विचरण भी करते हैं. होलिका दहन के बाद जमीन गर्म हो जाती है, जिससे भोलेनाथ के पैर जल सकते हैं. इसी के चलते हजारों साल से इस गांव में होलिका दहन नहीं होता. गांव के लोगों का कहना है कि ये परंपरा आगे भी ठीक इसी तरह जारी रहेगी.