बिहार विधानसभा चुनाव की सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. सीएम नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए सरकार ने सत्ता में अपना सियासी दबदबा बनाए रखने की हर संभव कोशिश में जुटी है. डिप्टी सीएम और वित्त मंत्री सम्राट चौधरी ने विधानमंडल में बजट पेश करते हुए महिलाओं के लिए सीधे कैश ट्रांसफर जैसी योजना का जिक्र नहीं किया, लेकिन महिला सशक्तिकरण पर पूरी तरह केंद्रित रहा है. इस तरह बिहार चुनाव से पहले साइलेंट वोटर्स पर नीतीश सरकार ने ओपन दांव चला है.
नीतीश कुमार की अगुवाई वाली सरकार ने बिहार में महिलाओं के लिए मोबाइल जिम, कामकाजी महिलाओं के लिए हॉस्टल, पिंक टॉयलेट, पिंक बस सेवा, परिवहन निगम में आरक्षण और महिला हाट जैसी योजनाओं का ऐलान किया. चुनावी साल को देखते हुए नीतीश सरकार ने बजट में महिलाओं पर खास फोकस रखा, लेकिन सवाल यही है कि क्या 2025 विधानसभा चुनाव में एनडीए के लिए गेम चेंजर साबित होगा?
महिलाओं को नीतीश सरकार की सौगात
वित्त मंत्री सम्राट चौधरी ने बजट पेश करते हुए ऐलान किया कि पटना में महिलाओं के लिए मोबाइल जिम खोले जाएंगे. साथ ही उन्होंने शहरों में कामकाजी महिलाओं के लिए छात्रावास बनाने की घोषणा की और कहा कि यह उनके रहने की सुविधा को बेहतर बनाएगा. महिलाओं के लिए नीतीश सरकार शहरों में पिंक टॉयलेट बनाएगी, जिससे महिलाओं की सुरक्षा और स्वच्छता सुनिश्चित की जा सके. नीतीश सरकार ने वादा किया है कि बिहार के प्रमुख शहरों में पिंक बस सेवा शुरू की जाएगी, इन बसों में ड्राइवर, कंडक्टर और यात्री सभी महिलाएं होंगी, जिनके लिए महिलाओं को प्रशिक्षित किया जाएगा. यह महिलाओं के लिए सुरक्षित यात्रा बनाने का बड़ा दांव है.
बिहार के परिवहन निगम में 33 फीसदी नौकरी महिलाओं के लिए रिजर्व होंगी. नीतीश सरकार ने ऐलान किया है कि बिहार राज्य पथ परिवहन निगम में ड्राइवर, कंडक्टर और इको मेनटेनेंस स्टाफ के पदों पर महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा. साथ ही पटना में महिला हाट बनाए जाने का भी ऐलान किया गया है. इसके अलावा बिहार के सभी बड़े शहरों में स्थापित व्यापार स्थलों में महिलाओं के लिए विशेष स्थान तय किए जाएंगे, जिससे महिला उद्यमियों को अपना व्यवसाय शुरू करने और आगे बढ़ाने में मदद होगी.
बिहार में महिला वोटर्स की अहम भूमिका
बिहार में महिलाओं की आबादी लगभग आधी है और सरकार बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. नीतीश कुमार के लगातार सत्ता में बने रहने में महिला वोटर्स अहम रोल प्ले करती रही हैं. इसीलिए नीतीश सरकार महिलाओं के लिए विभिन्न योजनाएं लाती रही है. बजट में जिस तरह नीतीश सरकार ने आधी आबादी को ध्यान रखते हुए तमाम घोषणाएं की हैं, उसे महिला सशक्तिकरण की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है.
नीतीश सरकार का बजट महिलाओं के लिए एक बड़ा तोहफा माना जा रहा है और बिहार की महिलाओं के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने में मदद करेगा. सरकार का मानना है कि महिलाओं का सशक्तिकरण ही राज्य के समग्र विकास की कुंजी है. इस तरह नीतीश कुमार से चुनाव से पहले महिला वोटों को साधने का दांव चला है, विधानसभा चुनाव में एनडीए के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है.
बिहार में कैसे रहा महिला वोटिंग पैटर्न?
बिहार में कुल 7.64 करोड़ मतदाता हैं, जिसमें से 4 करोड़ पुरुष और 3.6 करोड़ महिला वोटर हैं. इस तरह महिला वोटर बिहार की सरकार बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखती हैं. 2020 के चुनाव में महिला वोटर्स के दम पर ही एनडीए सरकार वापसी कर सकी थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार जीत का श्रेय बीजेपी के साइलेंट वोटरों को दिया था और खुद बताया था कि ये साइलेंट वोटर कोई और नहीं बल्कि महिलाएं हैं. महिला वोटों के दम पर ही नीतीश कुमार की सरकार पिछली बार बच सकी थी.
बिहार के तीन विधानसभा चुनाव के वोटिंग पैटर्न देखें तो महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा वोटिंग करने का पैटर्न दिखता है. 2020 में महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा वोटिंग की थी. पुरुषों ने 54.6 फीसदी वोट पड़े थे, जबकि 59.7 प्रतिशत महिलाओं ने इस चुनाव में मतदान किया था. 2015 के चुनाव में 51.1 फीसदी पुरुषों ने और 60.4 फीसदी महिलाओं का वोटिंग टर्नआउट था. 2010 के चुनाव में 53 पुरुषों ने मतदान किया था, तो महिलाओं ने 54.5 फीसदी वोटिंग टर्नआउट रहा. इस तरह महिलाओं की वोटिंग ज्यादा होने का सियासी लाभ नीतीश कुमार के अगुवाई वाले गठबंधन को मिलता रहा है.
नीतीश ने बिहार में कैसे बनाया वोटबैंक
नीतीश कुमार का बिहार की सत्ता में आने के बाद मुख्य फोकस महिलाओं पर ही रहा. नीतीश सरकार ने 10 लाख से ज्यादा महिला स्वयं सहायता समूहों की स्थापना हुई, जिनकी संयुक्त सदस्य संख्या एक करोड़ से ज्यादा है. इतना ही नहीं 2006 में पंचायतों में महिलाओं को आरक्षण देने की नीतीश कुमार की पहल ने बिहार के पितृसत्तात्मक पिछड़े इलाकों में धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से हलचल पैदा कर दी थी.
हालांकि, विपक्ष इसकी आलोचना की थी और इसे महिलाओं को रबर स्टैम्प के रूप में इस्तेमाल करने का एक और तरीका बताया था, लेकिन इस विचार ने दूरदराज के इलाकों की महिलाओं में आत्मविश्वास की भावना को पैदा किया. नीतीश कुमार ने स्कूल जाने वाली लड़कियों के लिए मुफ्त यूनिफॉर्म, किताबें और साइकिल देने का काम किया. सरकारी नौकरियों में महिलाओं की भर्ती बढ़ी है. इसके अलावा महिलाओं के कहने पर ही नीतीश कुमार ने बिहार में शराबबंदी लागू की थी. इस तरह से नीतीश कुमार ने महिलाओं को साधने के लिए बड़े सियासी दांव चले हैं. सीएम नीतीश कुमार ने हाल में ही महिला संवाद यात्रा कर सियासी नब्ज को समझने की कवायद की है और उसके बाद बजट में घोषणाएं की है.
महिलाओं पर मोदी सरकार का फोकस
केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद सबसे ज्यादा फोकस महिला वोटरों पर रहा है. उज्ज्वला योजना, शौचालयों का निर्माण,पक्का घर, मुफ्त राशन, महिलाओं को आर्थिक मदद जैसी कई ऐसी योजनाएं हैं, जिनका सीधा लाभ महिलाओं को होता है. मुद्रा योजना के तहत सर्वाधिक जोर अनुसूचित समाज की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने पर है. महिलाओं का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी कई योजनाओं पर विश्वास पिछले तीन लोकसभा चुनाव में भी दिखा है. साइलेंट वोटर की सियासी ताकत के दम पर बीजेपी केंद्र से लेकर देश के आधे से ज्यादा राज्यों में काबिज है.
बीजेपी की जीत में महिला वोटर का रोल
महिला वोट कितना अहम है, इसे इस बात से समझिए कि मध्य प्रदेश में लाडली बहना योजना की छह किस्त चुनाव से पहले खाते में पहुंचा दी गई, तो बीजेपी की बंपर जीत महिला वोट से हुई. 2024 के लोकसभा चुनाव में बहुमत के आंकड़े से पीछे रहने के बाद बीजेपी ने महिला वोटों को साधने का दांव चला है और हरियाणा से लेकर महाराष्ट्र तक उसे आजमाया. महाराष्ट्र में पांच किस्त पहुंचा दी तो बड़ी जीत एनडीए को मिली. हरियाणा चुनाव में बीजेपी ने महिलाओं से यही वादा किया और सफल रहा. उससे पहले छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी बीजेपी का महिलाओं को साधने के लिए कैश दांव चलना मुफीद रहा.
महिला वोटों की सियासी अहमियत को देखते हुए झारखंड में हेमंत सोरेन की अगुवाई वाली महागठबंधन सरकार ने राज्य में तीन किस्तें मइयां योजना की महिलाओं के बैंक अकाउंट में पहुंचा दीं, तो जीत हेमंत सरकार की हुई. दिल्ली में यही काम केजरीवाल नहीं कर पाए. चुनाव से पहले उन्होंने वादा किया, लेकिन महिला वोट इस बार नहीं सधा, ना सरकार बनी जबकि बीजेपी ने महिलाओं को 2500 रुपये महीने देने का वादा किया, जिसको पीएम मोदी ने अपनी गारंटी बताई थी. इसका लाभ बीजेपी को चुनाव में हुआ और महिलाओं को झुकाव आम आदमी पार्टी से ज्यादा बीजेपी की तरफ रहा. नीतीश ने अब बिहार के चुनाव में विनिंग फार्मूले का दांव चला है, लेकिन कैश पैसे देने के बजाय महिला सशक्तिकरण की दिशा में उठाया है.