सास,दामाद नही..बल्कि इस वजह से मशहूर है अलीगढ़ पिछले 140 सालों से

जब अलीगढ़ का नाम आता है, तो आजकल सास-दामाद की कहानियों पर लोगों की हंसी छूट जाती है। मगर हकीकत ये है कि अलीगढ़ की असली पहचान कहीं गहरी और ऐतिहासिक है—एक पहचान जो पिछले 140 सालों से देश और दुनिया में अपनी मजबूती का लोहा मनवाती आ रही है।

अलीगढ़ का तालों से नाता

इस शहर को ‘सिटी ऑफ लॉक’ भी कहा जाता है। यहां बने ताले न जाने कितने घरों को चोरों से महफूज़ कर चुके हैं। जब लोग परिवार के साथ सुकून से छुट्टियों पर जाते हैं, तब अलीगढ़ के ताले ही उनके घर की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाते हैं।

इतिहास की बात करें तो…

अलीगढ़ में तालों का निर्माण सबसे पहले ब्रिटिश राज के समय शुरू हुआ। जॉनसन एंड कंपनी, एक इंग्लिश फर्म, ने यहां सबसे पहले ताले बनाना शुरू किए थे। इन तालों का इस्तेमाल अंग्रेज अपने खजाने और जब्त की गई संपत्तियों की सुरक्षा के लिए करते थे।

आज भी जारी है ताला उद्योग का दबदबा

आज अलीगढ़ में हजारों छोटी-बड़ी फैक्ट्रियां हैं जो हर साल लाखों की संख्या में ताले बनाती हैं—छोटे, बड़े, डिजिटल, सिक्योरिटी लॉक और इंडस्ट्रियल यूज के भी। अलीगढ़ के ताले सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि कई देशों में एक्सपोर्ट भी होते हैं।

और भी बहुत कुछ है अलीगढ़ में…

यह वही शहर है जहां से घड़ी डिटर्जेंट की शुरुआत हुई, और पेटीएम के फाउंडर विजय शेखर शर्मा का होम टाउन भी यही है। मगर इन सबके बीच, जो चीज़ अलीगढ़ को सबसे पहले पहचान दिलाती है, वो हैं इसके मजबूत और भरोसेमंद ताले।

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