नवाज शरीफ के कार्यकाल में भारत-पाकिस्तान संबंधों का क्या रहा हाल? जानिए पूरा विश्लेषण

पहलगाम में हुए कायराना आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनातनी लगातार बढ़ती जा रही है. हालात इस कदर चिंताजनक हुए जा रहे हैं कि भारत सरकार ने पाकिस्तान के दर्जनों टीवी चैनल, सोशल मीडिया इंफलुएंसर के यूट्यूब चैनल को बंद करा दिया है. पर युद्ध की गहराती आशंका के बीच पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अपने भाई और देश के मौजूदा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को सलाह दी है कि इस्लामाबाद को भारत के साथ उलझने से बचना चाहिए. पाकिस्तानी अखबार द ट्रिब्यून ने अपने सूत्रों के हवाले से दावा किया है कि नवाज शरीफ ने शहबाज सरकार को कूटनीति के रास्ते पर चलने का मशवरा दिया है. साथ ही, शांति बहाली के लिए सभी तरह के कूटनीतिक विकल्पों पर विचार करने की बात की है.

नवज ने इतना ही नहीं किसी भी तरह के आक्रामक रूख को अख्तियार करने से बचने की बात की है. कहा जा रहा है कि शहबाज शरीफ ने नवाज शरीफ को रविवार को पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की तरफ से सिंधु जल समझौते को रद्द करने के भारत के फैसले के बाद अपनी तैयारियों की जानकारी दी. शरीफ परिवार के घर जाती उमरा में परिवार के लोगों की बैठक हुई. यहां नवाज की बेटी और पाकिस्तानी पंजाब प्रांत की मुख्यमंत्री मरियम नवाज भी मौजूद थीं. सवाल है कि एक तरफ जब पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ समेत और दूसरे नेता एक सुर में भारत पर हमले और युद्ध की ललकार कर रहे हैं. नवाज शरीफ क्यों नरमी की बातें कर रहे हैं. इसके पीछे की वजहें कई हैं.

3 बार प्रधानमंत्री रहे शरीफ
नवाज शरीफ पाकिस्तान के पहली दफा प्रधानमंत्री साल नवंबर 1990 में प्रधानमंत्री बने थे. उनका ये कार्यकाल जुलाई 1993 तक चला था. शरीफ का दूसरा कार्यकाल फरवरी 1997 से अक्टूबर 1999 के बीच रहा. वहीं, आखिरी दफा वे जून 2013 से लेकर जुलाई 2017 के बीच पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे. उनके प्रधानमंत्री रहते हुए कुछ एक मौके तौ ऐसे हैं, जब भारत-पाकिस्तान में काफी नजदीकियां आईं. मई 2024 में नवाज शरीफ के उस बयान को काफी सराहा गया जब उन्होंने कहा कि फरवरी 1999 में हुए लाहौर डिक्लेरेशन के बाद जो कुछ भी हुआ, वो भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भरोसे के साथ विश्वासघात था. यहां शरीफ का इशारा जो कुछ भी से कारगिल युद्ध की तरफ था.

वाजपेयी-शरीफ का दौर
दरअसल, तब 1999 मेंनवाज शरीफ के निमंत्रण पर वाजपेयी लाहौर तक गए थे. लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी की पाकिस्तान और दोस्ती की वो यात्रा पाकिस्तानी मिलिट्री को रास नहीं आई. पाकिस्तानी सेना के उच्च अधिकारियों ने बिना नवाज शरीफ से मंजूरी लिए जुलाई 1999 में भारत के खिलाफ कारगिल युद्ध छेड़ दिया. शरीफ का अलग रूख उनके सत्ता से बेदखलल होने का कारण भी बना. बाद में, अक्टूबर 1999 में नवाज सरकार का तख्तापलट कर जनरल मुशर्रफ ने सत्ता की कमान अपने हाथ में ले लिया. शरीफ इससे पहले 1997 के कॉमनवेल्थ एडिनबर्ग सम्मिट में भी हिस्सा लेने गए तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदर कुमार गुजराल से हुई द्विपक्षीय बैठक में दोस्ती की बात कर चुके थे.

नरेंद्र मोदी-शरीफ का दौर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल की बात की जाए तो2014 में जब वे पहली बार शपथ लेने जा रहे थे तो उन्होंने दक्षिण एशिया (सार्क के सदस्य देश – अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका) के सभी प्रमुख राष्ट्राध्यक्षों को बुलाने का फैसला किया था. तब शरीफ ने न्योता कुबूल किया और दिल्ली आए. फिर रमजान के मौके पर मोदी का शरीफ को फोन और बातचीच का दौर चला. एक मौका वो भी आया जब प्रधानमंत्री मोदी शरीफ के जन्मदिन के मौके पर लाहौर तक चले गए. लेकिन फिर पठानकोट और उरी में आतंकी हमला हुआ और चीजें पटरी से उतर गईं. खैर, नवाज 2017 में सत्ता से बेदखल हुए और फिर इमरान खान के दौर में पुलवामा से लेकर और कई मोर्चों पर चीजें बिगड़ीं.

सीजफायरः इमरान VS शरीफ
मगर नवाज शरीफ दोस्ती की पैरोकारी करते रहे.पिछले साल ही दोनों देशों के बीच संबंधों में तब नरमी के संकेत मिले थे, जब भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ की बैठक में शामिल होने के लिए इस्लामाबाद गए थे. तब नवाज शरीफ ने जयशंकर की यात्रा को एक अच्छी शुरूआत बताया था. नवाज शरीफ के कार्यकाल के दौरान जहां भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर उल्लंघन के मामले कभी भी एक बरस में हजार से ऊपर नहीं गए. पर इमरान खान के सत्ता में आते ही 2018 में सीजफायर के 2 हजार से ज्यादा, 2019 में तीन हजार से अधिक और 2020 में 5 हजार से ज्यादा मामले दर्ज हुए. अब फिर एक बार बॉर्डर पर सीजफायर उल्लंघन की घटनाएं बढ़ने लगी हैं.

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