जन औषधि दिवस पर विशेष: जेनेरिक दवाओं के प्रोत्साहन की जरूरत…

जन औषधि दिवस 7 मार्च को मनाया जाता है, और इस दिन का उद्देश्य जेनेरिक दवाओं के उपयोग को बढ़ावा देना है। जेनेरिक दवाएं वही दवाएं होती हैं, जो ब्रांडेड दवाओं के समान होती हैं, लेकिन इन्हें कम कीमत पर उपलब्ध कराया जाता है। इनका गुणवत्तापूर्ण और प्रभावी इलाज प्रदान करने में कोई कमी नहीं होती।जेनेरिक दवाओं की सबसे बड़ी खासियत यह है कि ये ब्रांडेड दवाओं से काफी सस्ती होती हैं। इससे गरीब और मध्यम वर्गीय लोगों को महंगे इलाज का खर्च कम करने में मदद मिलती है।जेनेरिक दवाएं आमतौर पर बाजार में आसानी से उपलब्ध होती हैं और इनके लिए पेटेंट की आवश्यकता नहीं होती, जिससे इनकी संख्या और आपूर्ति बढ़ जाती है।जेनेरिक दवाएं उन ब्रांडेड दवाओं के समान प्रभावी होती हैं, क्योंकि इनका निर्माण भी उच्च मानकों के अनुसार होता है। भारतीय ड्रग कंट्रोलर द्वारा इनकी गुणवत्ता सुनिश्चित की जाती है।

जन औषधि दिवस 7 मार्च को मनाया जाता है, और इस दिन का उद्देश्य जेनेरिक दवाओं के उपयोग को बढ़ावा देना है। जेनेरिक दवाएं वही दवाएं होती हैं, जो ब्रांडेड दवाओं के समान होती हैं, लेकिन इन्हें कम कीमत पर उपलब्ध कराया जाता है। इनका गुणवत्तापूर्ण और प्रभावी इलाज प्रदान करने में कोई कमी नहीं होती।जेनेरिक दवाओं की सबसे बड़ी खासियत यह है कि ये ब्रांडेड दवाओं से काफी सस्ती होती हैं। इससे गरीब और मध्यम वर्गीय लोगों को महंगे इलाज का खर्च कम करने में मदद मिलती है।जेनेरिक दवाएं आमतौर पर बाजार में आसानी से उपलब्ध होती हैं और इनके लिए पेटेंट की आवश्यकता नहीं होती, जिससे इनकी संख्या और आपूर्ति बढ़ जाती है।जेनेरिक दवाएं उन ब्रांडेड दवाओं के समान प्रभावी होती हैं, क्योंकि इनका निर्माण भी उच्च मानकों के अनुसार होता है। भारतीय ड्रग कंट्रोलर द्वारा इनकी गुणवत्ता सुनिश्चित की जाती है।

जन औषधि योजना:

भारत सरकार ने जन औषधि योजना शुरू की थी, जिसका उद्देश्य लोगों को सस्ती और प्रभावी जेनेरिक दवाइयां उपलब्ध कराना है। इस योजना के तहत, पीएम भीमा योजना के तहत जन औषधि केंद्र खोले गए हैं, जहां लोग अपनी दवाइयां कम कीमत पर खरीद सकते हैं। इन केंद्रों का लक्ष्य खासतौर पर उन वर्गों तक सस्ती दवाइयां पहुंचाना है जो महंगी ब्रांडेड दवाओं का खर्च नहीं उठा सकते।आपने सही कहा, आमतौर पर सभी दवाएं एक तरह के केमिकल सॉल्ट से बनी होती हैं, जो एक निश्चित रासायनिक संरचना होती है और इन्हें विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए तैयार किया जाता है। जेनेरिक दवाइयां उन दवाओं का एक प्रकार हैं जो इसी सॉल्ट का उपयोग करती हैं, लेकिन इनका नाम और पैकेजिंग ब्रांडेड दवाओं से अलग होता है।

जेनेरिक दवाइयां और उनकी विशेषताएं:

सॉल्ट के नाम पर आधारित: जेनेरिक दवाएं उसी केमिकल सॉल्ट के नाम से जानी जाती हैं, जिसका उपयोग इलाज के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी दवा का सक्रिय संघटक पैरासिटामोल है, तो उस दवा का नाम भी पैरासिटामोल ही होगा, न कि किसी ब्रांड का नाम।कम कीमत: जेनेरिक दवाइयां महंगी ब्रांडेड दवाइयों से सस्ती होती हैं, क्योंकि इनका प्रचार-प्रसार और विपणन कम खर्च में किया जाता है। साथ ही, इन्हें पेटेंट की जरूरत नहीं होती, जिससे उत्पादन लागत कम हो जाती है।गुणवत्ता: जेनेरिक दवाइयों की गुणवत्ता ब्रांडेड दवाइयों के समान होती है। इन्हें ड्रग कंट्रोलर द्वारा प्रमाणित किया जाता है, ताकि इनकी सुरक्षा और प्रभावशीलता सुनिश्चित हो सके।

प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना (पीएमबीजेपी):

पीएमबीजेपी की शुरुआत भारत सरकार ने की थी, जिसका उद्देश्य सस्ती और प्रभावी जेनेरिक दवाइयां आम जनता तक पहुंचाना है। इसके अंतर्गत जन औषधि केंद्र खोले जाते हैं, जहां लोग जेनेरिक दवाइयां ब्रांडेड दवाइयों की तुलना में काफी कम कीमत में प्राप्त कर सकते हैं। इस योजना का मुख्य उद्देश्य स्वास्थ्य सेवाओं का खर्च कम करना और सभी वर्गों तक गुणवत्तापूर्ण दवाइयां पहुंचाना है।

प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना के प्रमुख उद्देश्य:

सस्ती दवाइयां उपलब्ध कराना: यह परियोजना गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को महंगी ब्रांडेड दवाइयों के स्थान पर सस्ती, गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाइयां उपलब्ध कराने के लिए है।स्वास्थ्य पर खर्च कम करना: जेनेरिक दवाइयों के उपयोग से स्वास्थ्य खर्चों में भारी कमी आती है, जिससे मरीजों को इलाज के लिए ज्यादा पैसे खर्च नहीं करने पड़ते।स्वास्थ्य के अधिकार को बढ़ावा देना: सभी नागरिकों को सस्ते इलाज की सुविधा प्रदान करके यह योजना स्वास्थ्य का अधिकार सुनिश्चित करती है।

जेनेरिक दवाइयों का प्रचार और प्रोत्साहन:

जन जागरूकता: लोगों को जेनेरिक दवाइयों के फायदों के बारे में जागरूक करना जरूरी है। यह सुनिश्चित करना कि वे महंगी ब्रांडेड दवाइयों के स्थान पर जेनेरिक दवाइयों का उपयोग करें।जन औषधि केंद्रों का विस्तार: सरकार को जन औषधि केंद्रों का और विस्तार करना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक यह सस्ती दवाइयां पहुंच सकें।

देशवासियों में जेनरिक दवाओं  के प्रति जागरूकता और विश्वास पैदा करने के उद्देश्य से 7 मार्च को देश भर में जन औषधि दिवस  मनाया जाता है। यह दिन प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना की उपलब्धियों को मनाने का भी दिन है। केंद्र सरकार द्वारा नवंबर  2016 को घोषित  प्रधानमंत्री जनऔषधि परियोजना  में सरकार द्वारा उच्च गुणवत्ता वाली जेनरिक दवाइयां बाजार मूल्य 50 से 80 प्रतिशत तक  कम कीमत पर उपलब्ध कराई जाती है।  इसके लिए सरकार द्वारा देश भर में अब तक 15000 से ज्यादा ‘जन औषधि केंद्र ’ खोले  गए हैं, जहां 2047 प्रकार की जेनरिक दवाइयां और 300 से अधिक सर्जिकल उत्पाद उपलब्ध कराई जाती हैं।

कई डॉक्टर एसोसिएशन ने भी नए कानून का विरोध कर इसको वापिस लेने की मांग की थी। तर्क यह दिया गया था कि ब्रांडेड दवा न लिखने से मरीजों को नुकसान हो सकता है। विरोध के बाद एनएमसी से अपना फैसला वापिस ले लिया था। सरकार मरीजों को सस्ती दवाएं उपलब्ध करवाने के लिए कानून में संशोधन की तैयारी कर रही है।

इसके बाद डॉक्टर्स को मरीजों के लिए सिर्फ जेनेरिक दवा लिखनी होंगी, न कि किसी विशेष ब्रांड या कंपनी की। इसके बाद भी मरीजों को सस्ती दवाएं मिलने लगेंगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है, क्योंकि जेनेरिक दवाओं के चलन से बड़ी फार्मा कंपनियों को सीधे नुकसान होगा।

जेनेरिक दवाएं क्या होती है?  

आम तौर पर सभी दवाएं एक तरह का “केमिकल सॉल्ट” होती हैं। इन्हें शोध के बाद अलग-अलग बीमारियों के लिए बनाया जाता है। जेनेरिक दवा जिस सॉल्ट से बनी होती है, उसी के नाम से जानी जाती है। जैसे- दर्द और बुखार में काम आने वाले पैरासिटामोल सॉल्ट को कोई कंपनी इसी नाम से बेचे तो उसे जेनेरिक दवा कहेंगे। वहीं, जब इसे किसी ब्रांड (जैसे- क्रोसिन) के नाम से बेचा जाता है तो यह उस कंपनी की ब्रांडेड दवा कहलाती है।

जेनेरिक दवाइयां या ब्रांडेड दवाइयों में कोई फर्क नहीं होता यह दोनों एक जैसे ही काम करती हैं फर्क सिर्फ इतना है कि ब्रांडेड दवाइयां महंगी होती है क्योंकि उन पर दवा कंपनियों द्वारा मार्केटिंग करने का खर्च शामिल होता है इसलिए वह महंगी होती है इसके अलावा उनका रिसर्च एंड डेवलपमेंट का खर्च भी शामिल होता है बल्कि जो जेनेरिक दवाइयां हैं उनमें दवा कंपनियों का सिर्फ बनाने का खर्चा होता है इसलिए वह सस्ती होती हैं।

ब्रांडेड दवाई महंगी होतीं हैं क्योंकि ब्रांडेड दवाई के सॉल्ट का अविष्कार किसी कंपनी द्वारा किया जाता है। जो उसके मूल्य में उसमें अविष्कार का खर्च, उसकी मार्केटिंग का खर्च, डॉक्टरों में दवाई का प्रचार करने का खर्च और उसके अलावा उस दवाई को बनाने के लिए जो उन्होंने पूंजी लगाई उसका ब्याज जुड़ा होता है। इसके अलावा दवाई के मूल्य में अत्यधिक लाभ भी जोड़ा जाता है। इन सबको मिलाने से  दवाई का दाम काफी ज्यादा हो जाता है।

दवाओं का पेटेंट

जिस दवाई का आविष्कार जिस कंपनी ने किया होता है उसे उस दवाई का पेटेंट मिल जाता है। लेकिन 10 साल के बाद उसका दवाई का पेटेंट यानी अकेले दवाई बनाने का अधिकार खत्म हो जाता है। अब उसे कोई भी बनाकर बेंच सकता है ऐसे में छोटी छोटी कंपनियां उसका एक मॉलिक्यूल थोड़ा सा बदल के जेनेरिक के रूप में पेश कर देती हैं, जिसका मूल्य ब्रांडेड मूल्य के 20% तक होता है। यानी ब्रांडेड दवाई का मूल्य जेनेरिक दवा के मूल्य से 4 या 5 गुना और 10 गुना तक महंगी होती है। दरअसल, फार्मा कंपनियां ब्रांडेड दवाइयों की रिसर्च, पेटेंट और विज्ञापन पर काफी पैसा खर्च करतीं हैं। जबकि जेनेरिक दवाइयों की कीमत सरकार तय करती है और इसके प्रचार-प्रसार पर ज्यादा खर्च भी नहीं होता।

गंभीर बीमारियों के पेटेंट बड़ी कंपनियों के पास  

कई जानलेवा बीमारियों जैसे एचआईवी, लंग कैंसर, लीवर कैंसर जैसी बीमारियों में काम आने वाली दवाओं के ज्यादातर पेटेंट बड़ी-बड़ी कंपनियों के पास हैं। वे इन्हें अलग-अलग ब्रांड से बेचती हैं। अगर यही दवा जेनेरिक में उपलब्ध हो तो इलाज पर खर्च 200 गुना तक घट सकता है।

जैसे- एचआईवी की दवा टेनोफिविर या एफाविरेज की ब्रांडेड दवा का खर्च 2,500 डॉलर यानी करीब 1 लाख 75 हजार रुपये है, जबकि जेनरिक दवा में यही खर्च 12 डॉलर यानी महज 840 रुपये महीने तक हो सकता है। हालांकि, इन बीमारियों का इलाज ज्यादातर सुपर स्पेशियलिटी अस्पतालों में होता है। ऐसे में ये दवाएं इन अस्पतालों में या वहां के केमिस्ट के पास ही मिल पाती हैं।

नोवार्टिस की कैंसर की दवा ग्लीवियो- इमेटिनिब मिसाइलेट का एक महीने का खर्च 2,158 डॉलर यानी करीब 1.51 लाख रूपए पड़ता है, जबकि जेनरिक रूप में इसी दवा का खर्च 174 डॉलर प्रति माह (12,180 रूपए) है, यानी 12 गुना या 92% से भी कम। – ऐसे ही बेयर की कैंसर ड्रग सोराफेनिब टोसाइलेट, जिसे वह नेक्सावर के नाम से बेचती है, उसका एक महीने का खर्च करीब 5,030 डॉलर है, जबकि जेनरिक दवा लेने पर यही खर्च महज 122 डॉलर प्रति माह रह जाता है।

फार्मा सेक्टर में भारत की मजबूत स्थिति

देश में फार्मा इंडस्ट्री 1.20 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की है और इसकी सालाना ग्रोथ 11% है। देश में सालाना करीब 1.27 लाख करोड़ की दवाएं बेची जाती हैं, इसमें 75% से ज्यादा हिस्सा जेनरिक दवाओं का है। भारत सस्ती यानी जेनरिक दवाइयों का सबसे बड़ा एक्सपोर्टर है। दुनिया भर की डिमांड की 20% दवाइयां भारत सप्लाई करता है। अमेरिका में 40% और यूके में 25% दवाइयां भारत सप्लाई करता है।

2018-19 में देश से 1,920 करोड़ डॉलर की दवाइयां एक्सपोर्ट की गईं। इसमें पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 11% की बढ़ोतरी हुई। भारत से कुल एक्सपोर्ट की 30% दवा अमेरिका, 19% अफ्रीका और 16% दवा यूरोपीय देशों में एक्सपोर्ट की गई। दुनियाभर में कुल वैक्सिन डिमांड का 50% भारत से सप्लाई होता है। इनके अलावा दक्षिण अफ्रीका, रूस, ब्राजील, नाइजीरिया और जर्मनी में भी भारतीय दवाएं एक्सपोर्ट की गईं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Captcha loading...

Back to top button